Thursday, October 25, 2007

कवियों का आत्मप्रचार

ब्लोग पर आत्माभिव्यक्ति तो ठीक है लेकिन उसे अपना पोस्टर बना देना कहाँ तक उचित है.एक कवि हैं क्रोधितत्व ...माफ़ करें बोधिसत्व ...वे दिन-रात आत्मप्रचार में लगे रहते हैं.क्या कैंची को नही मालूम कि पाठ्यक्रम में कवितायें कैसे चुनी जाती हैं.खुशी की बाट है कि उनकी कवितायें पढाई जा रही है,लेकिन इसका मतलब यह नही है कि वे अपनी ख़बरों से ब्लोग पाठकों कि आतंकित करते रहें.अकेले वही नही हैं...और भी कवि हैं और कुछ असफल कवि हैं...जो दिन-रात ब्लोग के जरिये लोगों कि भावनाओं को सहलाते हैं और खुद ही खुश हो जाते हैं.तकनीक आपको यह नही सिखाती कि आप उसका क्या इस्तेमाल करें.कवि और साहित्यकार जहाँ भी जाते हैं आत्ममुग्धता से माहौल दूषित कर देते हैं.

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