Tuesday, October 16, 2007

माफ़ करें कविगण

इन दिनों ब्लोग पर साहित्यकारों की भीड़ बढती जा रही है.सारे कवि अपनी कवितायेँ ब्लोग पर लिख रहे हैं और समझ रहे हैं कि उनके पाठक बढ़ रहे हैं.सच्चाई से अपने देश के कवि और साहित्यकार वैसे भी दूर रहते हैं.उन्हें ब्लोग की दुनिया वास्तविक लगने लगी है.कविता देने के साथ ही प्रवचन देने का भी शौक़ है सभी को.एक कवि लिखता है और दुसरे सारे कवि टिप्पणियों से उसे शाबासी देने चले आते हैं.भाई इनकी आदत को कतरने की ज़रूरत है.आप मेरी कैंची लें और जहाँ मर्जी हो वहाँ से काटें.कवि की जाती बड़ी बेशर्म होती है.उन्हें ठीक से नही कत्रेंगे तो वे बढते रहेंगे.फिलहाल इतना ही,अगर आप को मेरी बात सही कगी हो तो खुश हो लें.बुरी लगी हो तो आप मेरा क्या कर लेंगे?

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