Thursday, October 25, 2007
कवियों का आत्मप्रचार
ब्लोग पर आत्माभिव्यक्ति तो ठीक है लेकिन उसे अपना पोस्टर बना देना कहाँ तक उचित है.एक कवि हैं क्रोधितत्व ...माफ़ करें बोधिसत्व ...वे दिन-रात आत्मप्रचार में लगे रहते हैं.क्या कैंची को नही मालूम कि पाठ्यक्रम में कवितायें कैसे चुनी जाती हैं.खुशी की बाट है कि उनकी कवितायें पढाई जा रही है,लेकिन इसका मतलब यह नही है कि वे अपनी ख़बरों से ब्लोग पाठकों कि आतंकित करते रहें.अकेले वही नही हैं...और भी कवि हैं और कुछ असफल कवि हैं...जो दिन-रात ब्लोग के जरिये लोगों कि भावनाओं को सहलाते हैं और खुद ही खुश हो जाते हैं.तकनीक आपको यह नही सिखाती कि आप उसका क्या इस्तेमाल करें.कवि और साहित्यकार जहाँ भी जाते हैं आत्ममुग्धता से माहौल दूषित कर देते हैं.
Tuesday, October 16, 2007
माफ़ करें कविगण
इन दिनों ब्लोग पर साहित्यकारों की भीड़ बढती जा रही है.सारे कवि अपनी कवितायेँ ब्लोग पर लिख रहे हैं और समझ रहे हैं कि उनके पाठक बढ़ रहे हैं.सच्चाई से अपने देश के कवि और साहित्यकार वैसे भी दूर रहते हैं.उन्हें ब्लोग की दुनिया वास्तविक लगने लगी है.कविता देने के साथ ही प्रवचन देने का भी शौक़ है सभी को.एक कवि लिखता है और दुसरे सारे कवि टिप्पणियों से उसे शाबासी देने चले आते हैं.भाई इनकी आदत को कतरने की ज़रूरत है.आप मेरी कैंची लें और जहाँ मर्जी हो वहाँ से काटें.कवि की जाती बड़ी बेशर्म होती है.उन्हें ठीक से नही कत्रेंगे तो वे बढते रहेंगे.फिलहाल इतना ही,अगर आप को मेरी बात सही कगी हो तो खुश हो लें.बुरी लगी हो तो आप मेरा क्या कर लेंगे?
Friday, October 5, 2007
कंघी कैंची का काम
कंघी कैंची एक साथ काम करती हैं तो वे हमारे बालों को काटती और संवारती हैं.इस ब्लॉग का मुख्य काम काटना और संवारना होगा.हमारे आसपास लाखों ऐसी घटनाएं होती हैं,जिन्हें काटने- संवारने की जरूरत आप भी महसूस काते होंगे.बस यों समझें कि कंघी कैंची आप ही का काम कर रही हैं.
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